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पु॒रु॒ष्टु॒तस्य॒ धाम॑भिः श॒तेन॑ महयामसि। इन्द्र॑स्य चर्षणी॒धृतः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

puruṣṭutasya dhāmabhiḥ śatena mahayāmasi | indrasya carṣaṇīdhṛtaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पु॒रु॒ऽस्तु॒तस्य॑। धाम॑ऽभिः। श॒तेन॑। म॒ह॒या॒म॒सि॒। इन्द्र॑स्य। च॒र्ष॒णि॒ऽधृतः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:37» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:2» वर्ग:21» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:3» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब प्रजा के गुणों को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे हम लोग (पुरुष्टुतस्य) बहुतों से प्रशंसा पाये हुए और (चर्षणीधृतः) मनुष्यों को धारण करनेवाले (इन्द्रस्य) अत्यन्त ऐश्वर्य्य से युक्त राजा का (शतेन) असङ्ख्य (धामभिः) जन्म स्थान और नामों से (महयामसि) पूजन करैं वैसे उस प्रशंसित का सत्कार आप लोग भी करो ॥४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि राजा आदि न्यायकारी जनों का सब प्रकार सत्कार करैं और राजा आदि भी प्रजाजनों का सदा सत्कार करैं, ऐसा करने पर राजा और प्रजा इन दोनों के मङ्गल की उन्नति होती है ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ प्रजागुणानाह।

अन्वय:

हे मनुष्या यथा वयं पुरुष्टुतस्य चर्षणीधृत इन्द्रस्य शतेन धामभिर्महयामसि। तथैतस्य सत्कारं यूयमपि कुरुत ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (पुरुष्टुतस्य) बहुभिः प्रशंसितस्य (धामभिः) जन्मस्थाननामभिः (शतेन) असङ्ख्येन (महयामसि) पूजयाम (इन्द्रस्य) परमैश्वर्य्ययुक्तस्य राज्ञः (चर्षणीधृतः) यश्चर्षणीन् मनुष्यान्धरति तस्य ॥४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यै राजादिन्यायकारिणां सर्वथा सत्कारः कर्त्तव्यो राजादयोऽपि प्रजास्थान् सदा सत्कुर्युरेवंकृते सत्युभयेषां मङ्गलोन्नतिर्भवति ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी राजा इत्यादी न्यायकारी लोकांचा सर्व प्रकारे सत्कार करावा. राजा इत्यादींनीही प्रजाजनांचा सत्कार करावा, असे करण्याने राजा व प्रजा या दोघांचेही कल्याण होते. ॥ ४ ॥